Friday, May 23, 2014

Sadhu aur aajgar. ( Kahani Suni Sunai)

एक जंगल में एकऋषि का अश्राम्र  था  आश्रमसुन्दर पेड़ पौधों से घिरा था , उस आश्रम  मे विभिन्न प्रकार के जीव जन्तु  रहते थे. आश्रम में रहने वाले अजगर से सभी भयभीत थे.



ऋषि जी अक्सर आस पास के गाव मे रहने वाले लोगों को प्रवचन करते थे. एक दिन अजगर शिकार कर के वहीं पास मे पड़ा हुआ था
उसने ऋषिवर को कहते हुए सुना की हमें किसी भी प्राणी को नुकसान नहीं पहुचना चाहिए , हर जीव में ईश्वर का वास होता है. ऋषि की बातों का उसपर काफ़ी प्रभाव पड़ा. उसने उस दिन से निश्चय कर लिया की वो किसी भी प्राणी को नुकसान नहीं पहुचाएगा. उसने अश्रमर मे उपस्थित एक बड़े पेड़ के नीचे शरण ली और ऋषिवर की बातों को जीवन में उतरने की कोशिश करने लगा. उसने निश्चय किया की वो मासूम जानवरों का शिकार नहीं करेगा जी प्रकार अन्य जीव शाकाहार करते है वो भी शाकाहार करेगा. वो किसी भी जीव को डराएगा नहीं. छोटे बच्चोंको तो बिल्कुल भी नहीं. जैसा की हम सभी जानते है, अजगर माँसाहारी  होता है वो उसका यह निर्णय उसके लिए घातक सिद्ध हुआ और वह बीमार पड़ गया. नटखट बच्चे जो अभी तक उससे डरते थे, निडर होने लगे , कुछ  बच्चों ने उसपर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. अजगर की हालत दिन पर दिन खराब होने लगी. उसका हिलना डुलना भी मुश्किल हो गया. ऋषिवर को जब यह पता चला तो वो अजगर के पास आए और उन्होंने उससे उसकी तबीयत का हाल पूछा. अजगर जो की ऋषि का बड़ा भक्त हो चुका था , ऋषि को पास पा कर बहुत प्रसन्न हुआ. उसने उन्हे बताया की वो उनके बताए हुए रास्ते में चलने का प्रयास कर रहा है. वो अपने पापों से मुक्त होना चाहता है,उसने शाकाहारी भोजन लेना शुरू कर दिया है और वो किसी प्राणी को नुकसान नही पहुँचता, बच्चों को डरता भी नहीं. अच्छा तो ये बात है. ऋषिवार ने कहा . तभी ये छोटे- छोटे बच्चे जो तुम्हारे नाम से डरते थे तुम पर पत्थर फेंक रहें हैं. ऋषि ने उसे समझाया की माँसाहारी होना तुम्हारी ज़रूरत है क्योंकि तुम्हारा शरीर माँसाहार के लिए ही बना है, अतः जीवों का शिकार करना तुम्हारे लिए पाप नहीं है. जीव, जीव का भोजन है यह चक्र ईश्वर ने बनाया है, तुम उस श्रंखला की कड़ी हो. यह फुड वेब ईश्वर ने धरती को संतुलित रखने के लिए बनाया है. प्रकृति के इस नियम को तोड़ कर तुम जीवित नही रह सकते. यह तुम्हारे लिए पाप भी नहीं है. जहाँ तक बच्चों का सवाल है तुम उन्हें नुकसान मत पहुँचाओं पर भयभीत तो रखो वरना वो पत्थर मार मार कर अधमरा कर देंगे. अपने जीवन की सुरक्षा भी तुम्हें स्वयं ही करनी है. अतः तुम भले ही उन्हें काटो मत पर फुंफ़करो अवश्य . जीवन भलीभाँति जीने के लिए विरोधियों में भय होना आवश्यक है. अधिक मिठास चीटियों का भोजन बनती है.